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Monday 17 January 2022

General Science Top 50 Important Questions By Junaid Sir

 General Science Top 50 Important Questions 


1. टिटनेस से शरीर का तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।


2. स्वस्थ मनुष्य के शरीर में रक्त का औसत 5 - 6 लीटर होता है।


3. मनुष्य के रक्त का शुद्धिकरण किडनी में होता है।


4. मानव शरीर की सबसे छोटी ग्रंथि पिट्यूटरी मस्तिष्क में होती है।


5. मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत होती है।


6. इन्सुलिन की खोज बैटिंग एवं वेस्ट ने की थी।


7. वस्तु का प्रतिबिंब आँखों के रेटिना में बनता है।


8. नेत्रदान में आँख के कार्निया को दान किया जाता है।


9. सोयाबीन में सर्वाधिक प्रोटीन ( 42% ) पाया जाता है।


10. जल में घुलनशील विटामिन B एवं C है।


11. विटामिन सी C खट्टे फलों में पाया जाता है।


12. विटामिन सी की रासायनिक नाम 'स्कर्वीक एसिड' है।13. जीव विज्ञान के जनक अरस्तू को कहा जाता है।


14. जीव विज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग लैमार्क एवं ट्रेविरेनस ने किया था।


15. वनस्पति विज्ञान के जनक थियोफ्रस्ट्स को कहा जाता है।


16. आधुनिक वर्गीकी ( Modern taxonomy ) के पिता लीनियस को कहा जाता है।


17. एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीका की खोज की थी।


18. आम का वनस्पतिक नाम मेनजीफेरा इंडिका है।


19. कार्बन डाई आक्साइड गैस ग्रीन हाउस प्रभाव में सबसे ज्यादा योगदान करती है।


20. त्वचा का कैंसर सूर्य की पराबैंगनी किरणों से होता है।.


21. रेबीज के टीके की खोज एलेक्जैंडर फलेमिंग ने की थी।


22. विद्युत बल्ब के अंदर आर्गन गैस भरी होती है।


23. नाइट्रस आक्साइड को हंसाने वालीगैस कहा जाता है। इसकी खोज प्रीस्टले ने की थी।


24. सर्वप्रथम 'आर्वत सारणी ' का निर्माण रशियन वैज्ञानिक मेंडलीफ ने किया था।


25. आधुनिक आर्वत सारणी के नियम मोसले द्वारा प्रतिपादित किया गया है।


26. विद्युत धारा को ऐम्पियर में मापा जाता है।


27. डायनेमो उपकरण द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है।.


28. मोमबत्ती रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में रूपांतरित करती है।


29. प्रकाश वर्ष दूरी मापने की इकाई है। दूरी मापने की सबसे बड़ी इकाई पारसेक है।


30. साधारण नमक ( सोडियम क्लोराइड NaCl ) खाने एवं आचार के परिरक्षण में उपयोग होता है।


31. हीरा एवं ग्रेफाइट कार्बन के अपरूप है।


32. हीरा विद्युत का कुचालक होता है तथा ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होता है।


33. एल. पी. जी. में ब्यूटेन एवं प्रोपेन का मिश्रण होता है।


34. एल. पी. जी. की तेज गंध उसमें मिले सल्फर के यौगिक ( मिथाइल मरकॅाप्टेन ) से होती है।


35. चाँदी एवं तांबा विद्युत की सर्वश्रेष्ठ सुचालक है।


36. टाइटेनियम को रणनीतिक धातु कहा जाता है।


37. सिल्वर आयोडाइड कृत्रिम वर्षा के लिए प्रयोग किया जाता है।


38. मतदाताओं की अंगुलियों में निशान के लिए सिल्वर नाइट्रेट लगाया जाता है।


39. तड़ित चालक का आविष्कार बेंजामिन फैकलिन ने किया था।


40. शुष्क बर्फ़ ठोस कार्बन डाइ आक्साइड होता है।


41. प्लेटेनियम को सफेद स्वर्ण कहा जाता है।


42. क्लोरीन गैस फूलों का रंग उड़ा देती है।


43. बुध और शुक्र के एक भी उपग्रह नही है।


44. शनि के सर्वाधिक उपग्रह है।


45. मनुष्य का रक्त बैंक स्प्लीन या प्लीहा को कहते है।


46 मनुष्य को सर्वाधिक ऊर्जा कार्बोहाइड्रेट्स से प्राप्त होती है.


47 .समुद्र के नीला प्रतीत होने का कारण प्रकाश का परावर्तन तथा जल के कणों का प्रकाश द्वारा  प्रकीर्णन है.


48 .सोना अम्लराज अम्ल में घुल जाता है.


49 .पॉलीथिन एथिलीन के बहुलीकरण से प्राप्त होता है.


50.कोशिका का पावर हाउस माइट्रोकांड्रिया को कहा जाता है.


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Tuesday 24 March 2020

Bihar Board Inter Result 2020

Inter Result 2020
https://www.sarkariresult.com/2019/bihar-board-bseb.php

http://onlinebseb.in/

http://biharboardonline.bihar.gov.in/

https://bihar.indiaresults.com/bseb/mindex.html

Saturday 23 February 2019

Mathematics Test Examination Result 23-02-2019

Mathematics Test Examination Result 23-02-2019

1. Gopal Kumar.     29/40
2. Md. Shahban.     20/40
3. Shakil Ahmad.   15/40
4. Jamil Akhtar.     15/40
5. Aftab Alam.        10/40
6. Md. Shaud.         09/40
7. Md. Siraj.            05/40
8. Md. Masud.        03/40
9. Md. Shahil.         00/40
10. Md. Manirul.   00/40
11. Amabara.         39/40
12. Maryam.          35/40
13. Sultana.            35/40
14. Johra.                35/40
15. Rafat.                35/40
16. Tula Banu.       34/40
17. Tamanna.        32/40
18. Baharun.         32/40
19. Tamanna.        30/40
20. Razifa.              27/40
21. Tamanna.        25/40
22. Sagufta.           23/40
23. Zainab.            16/40

Sunday 17 February 2019

Physics : Test Examination Result 16-02-2019

छात्र / छात्राओं का
नाम

प्राप्तांक
प्रतिशत
1. तुला प्रवीन

20
100
2. मरियम खातून

16
 80
3. सुल्ताना प्रवीन

20
100
4. जोहरा खातून

12
60
5. फातिमा प्रवीन



6. तमन्ना प्रवीन ( उचितपुर)

18
90
7. तमन्ना खातून (चांपी )

20
100
8.  राज़िफा खातून

16
80
9. तमन्ना प्रवीन (चांपी )

16
80
10. बहारून निशा

18
90
11. मो० मानिकचंद



12. जैनब प्रवीन



13. सगुफ्ता प्रवीन.

16
80
14. अम्बरा खातून

20
100
15. रफत प्रवीन

20
100
16. मो० इसरार

14
70
17. मो० सोहेल

11
55
18. मो० मसूद



19. मो० फैसल



20. मो० मनिरुल


Saturday 9 February 2019

The Best Ghajals of Dr. Rahat Indori Collected By Junaid Sir.

The Best Ghajals of  Dr. Rahat Indori Collected   By  Junaid Sir.


1.
लोग हर मोड़ पर रुक – रुक के संभलते क्यों है
इतना डरते है तो फिर घर से निकलते क्यों है

मैं ना जुगनू हूँ दिया हूँ ना  कोई तारा हूँ
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं

नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ – आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं

मोड़ तो होता हैं जवानी का संभलने के लिये
और सब लोग यही आकर फिसलते क्यों हैं

2.
सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान  रहे

ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे

वो शख्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता हैं
तुम उसको दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे

मुझे ज़मीं की गहराइयों ने दबा लिया
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे

अब अपने बिच मरासिम नहीं अदावत है
मगर ये बात हमारे ही दरमियाँ रहे

सितारों की फसलें उगा ना सका कोई
मेरी ज़मीं पे कितने ही आसमान रहे

वो एक सवाल है फिर उसका सामना होगा
दुआ करो की सलामत मेरी ज़बान रहे

3.
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए

मौत का ज़हर हैं फिजाओं में
अब कहा जा के सांस ली जाए

बस इसी सोच में हु डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए

मेरे माजी के ज़ख्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए

बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए

4.
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं  मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं  तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं

उसकी याद आई हैं  साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

5.
इन्तेज़ामात नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ

मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं तेरे आँगन में उजाला जाएँ

गम सलामत हैं तो पीते ही रहेंगे लेकिन
पहले मयखाने की हालात तो संभाली जाए

खाली वक्तों में कहीं बैठ के रोलें यारों
फुरसतें हैं तो समंदर ही खंगाले जाए

खाक में यु ना मिला ज़ब्त की तौहीन ना कर
ये वो आसूं हैं जो दुनिया को बहा ले जाएँ

हम भी प्यासे हैं ये अहसास तो हो साकी को
खाली शीशे ही हवाओं में उछाले जाए

आओ शहर में नए दोस्त बनाएं “राहत”
आस्तीनों में चलो साँप ही पाले जाए

6.
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया

अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया

रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना
सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया

रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ
तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया

इस बार एक और भी दीवार गिर गयी
बारिश ने मेरे घर को हवादार कर दिया

बोल था सच तो ज़हर पिलाया गया मुझे
अच्छाइयों ने मुझे गुनहगार कर दिया

दो गज सही ये मेरी मिलकियत तो हैं
ऐ मौत तूने मुझे ज़मीदार कर दिया

7.
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं

*****

आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो

*****

जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए
काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए

दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया
फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए

*****
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें

शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें

*****

गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम  क्या क्या हैं
में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं

फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं

******

कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते  हैं
कभी धुएं की तरह पर्वतों से उड़ते हैं

ये केचियाँ हमें उड़ने से खाक रोकेंगी
की हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं

*****

हर एक हर्फ़ का अंदाज़ बदल रखा हैं
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा हैं

मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक “ताजमहल” रखा हैं

*****

जवानिओं में जवानी को धुल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते, भूल करते हैं

अगर अनारकली हैं सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्ते कबूल करते हैं

*****

नए सफ़र का नया इंतज़ाम कह देंगे
हवा को धुप, चरागों को शाम कह देंगे

किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइए
वरना इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे

*****
जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे

भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे

*****

इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए

फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए

*****

सरहदों पर तनाव हे क्या
ज़रा पता तो करो चुनाव हैं क्या

शहरों में तो बारूदो का मौसम हैं
गाँव चलों अमरूदो का मौसम हैं

*****

काम सब गेरज़रुरी हैं, जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, गजब करते हैं

आप की नज़रों मैं, सूरज की हैं जितनी अजमत
हम चरागों का भी, उतना ही अदब करते हैं

******

ये सहारा जो न हो तो परेशां हो जाए
मुश्किलें जान ही लेले अगर आसान हो जाए

ये कुछ लोग फरिस्तों से बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी चढ़ जाये तो इन्सां हो जाए

******

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं

उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो
धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

*****

लवे दीयों की हवा में उछालते रहना
गुलो के रंग पे तेजाब डालते रहना

में नूर बन के ज़माने में फ़ैल जाऊँगा
तुम आफताब में कीड़े निकालते रहना

*****

जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे
में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे

तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव
में तुझको कैसे पढूंगा, मुझे किताब तो दे

*****

सफ़र की हद है वहां तक की कुछ निशान रहे
चले चलो की जहाँ तक ये आसमान  रहे

ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे

*****

तुफानो से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो

फूलो की दुकाने खोलो, खुशबु का व्यापर करो
इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

*****

उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब

*****

जा के कोई कह दे, शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तैयारी से

बादशाहों से भी फेके हुए सिक्के ना लिए
हमने खैरात भी मांगी है तो खुद्दारी से

*****

बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा

चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं
कौन, कब, कौन सी  सरकार में आ जाएगा

*****

नयी हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती हैं
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती हैं

जो जुर्म करते है इतने बुरे नहीं होते
सज़ा न देके अदालत बिगाड़ देती हैं

*****

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

मोड़  होता हैं जवानी का संभलने  के लिए
और सब लोग यही आके फिसलते क्यों हैं

*****

साँसों की सीडियों से उतर आई जिंदगी
बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम

उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी
हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम

*****

इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ
मैं निहत्था ही ज़माने  के लिए काफी हूँ

हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ

एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ

*****

दिलों में आग, लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चहेरों पर, दोहरी नकाब रखते हैं

हमें चराग समझ कर भुझा ना पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं

*****

राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना
हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना

नशा वेसे तो बुरी सी है, मगर
“राहत”  से सुननी  हो तो थोड़ी सी पिला भी देना

*****

इन्तेज़ामात  नए सिरे से संभाले जाएँ
जितने कमजर्फ हैं महफ़िल से निकाले जाएँ

मेरा घर आग की लपटों में छुपा हैं लेकिन
जब मज़ा हैं, तेरे आँगन में उजाला जाएँ

*****

ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
में बच भी जाता तो मरने वाला था

मेरा नसीब मेरे हाथ कट गए
वरना में तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था

*****

इस से पहले की हवा शोर मचाने लग जाए
मेरे “अल्लाह” मेरी ख़ाक ठिकाने लग जाए

घेरे रहते हैं खाली ख्वाब मेरी आँखों को
काश कुछ  देर मुझे नींद भी आने लग जाए

साल भर ईद का रास्ता नहीं देखा जाता
वो गले मुझ से किसी और बहाने लग जाए

*****

दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राय ली जाए

बोतलें खोल के तो पि बरसों
आज दिल खोल के पि जाए

*****

फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए

भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए
पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए

*****

यही ईमान लिखते हैं, यही ईमान पढ़ते हैं
हमें कुछ और मत पढवाओ, हम कुरान  पढ़ते हैं

यहीं के सारे मंजर हैं, यहीं के सारे मौसम हैं
वो अंधे हैं, जो इन आँखों में पाकिस्तान पढ़ते हैं

*****

चलते फिरते हुए मेहताब  दिखाएँगे तुम्हे
हमसे मिलना कभी पंजाब दिखाएँगे तुम्हे

*****

इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा  मोल दिया
बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया

जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए
जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया

*****

कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया

अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया

*****

मौसमो का ख़याल रखा करो
कुछ लहू मैं उबाल रखा करो

लाख सूरज से दोस्ताना हो
चंद जुगनू भी पाल रखा करो

8.
बुलाती है मगर जाने का नईं
ये दुनिया है इधर जाने का नईं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुजर जाने का नईं

सितारें नोच कर  ले जाऊँगा
में खाली हाथ घर जाने का  नईं

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नईं

वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नईं

नईं – नईं का मतलब पुरानी उर्दू में नहीं होता है
वबा  – महामारी

9.
अंदर का ज़हर चूम लिया, धूल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवकूफ
सारे सिपाही माँ के थे घुल के आ गए

मस्जिद में दूर दूर कोई दुसरा न था
हम आज अपने आप से मिल जुल के आ गये

नींदो से जंग होती रहेगी तमाम उम्र
आँखों में बंद ख्वाब अगर खुल के आ गए

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखि थी पहली बार
आईने को मजे भी मुक़ाबिल के आ गए

अनजाने साये फिरने लगे हैं इधर उधर
मौसम हमरे शहर में काबुल के आ गये

10.
समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है
जहाज़ खुद नहीं चलते खुदा चलाता है

ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये
वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है

वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाजों में
मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है

ये लोग पांव नहीं जेहन से अपाहिज हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है

हम अपने बूढे चिरागों पे खूब इतराए
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है

11.
उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं, मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब

जाने मैं किस दिन डूबूँगा, फिक्रें करते हैं
दरिया वरीया,  कश्ती वस्ती, लंगर वंगर सब

इश्क़ विश्क़ के सारे नुस्खे, मुझसे सीखते हैं
सागर वागर, मंज़र वंजर, जोहर वोहर सब

तुलसी ने जो लिखा अब कुछ बदला बदला हैं
रावण वावण, लंका वंका, बन्दर वंदर  सब

12.
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करके
दिल के बाज़ार में बैठे हैँ ख़सारा  करके

एक चिन्गारी नज़र आई थी बस्ती मेँ उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके

मुन्तज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा करके

मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भंवर है जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके

ख़सारा – हानि, क्षति, नुक्सान
मुन्तज़िर –  इंतज़ार करने वाला

13.
ये ज़िन्दगी सवाल थी जवाब माँगने लगे
फरिश्ते आ के ख़्वाब मेँ हिसाब माँगने लगे

इधर किया करम किसी पे और इधर जता दिया
नमाज़ पढ़के आए और शराब माँगने लगे

सुख़नवरों ने ख़ुद बना दिया सुख़न को एक मज़ाक
ज़रा-सी दाद क्या मिली ख़िताब माँगने लगे

दिखाई जाने क्या दिया है जुगनुओं को ख़्वाब मेँ
खुली है जबसे आँख आफताब माँगने लगे

14.
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं है
रात के साथ गयी बात मुझे होश नहीं

मुझ को ये भी नहीं मालूम की जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसूंओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने क्या टूटा है पैमाना की दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं

15.
अँधेरे चारों तरफ़ सायं-सायं करने लगे
चिराग़ हाथ उठाकर दुआएँ करने लगे

तरक़्क़ी कर गए बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज़ हैं जो अब दवाएँ करने लगे

लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे

ज़मीं पे आ गए आँखों से टूट कर आँसू
बुरी ख़बर है फ़रिश्ते ख़ताएँ करने लगे

झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इलतिजाएँ करने लगे

अजीब रंग था मजलिस का, ख़ूब महफ़िल थी
सफ़ेद पोश उठे काएँ-काएँ करने लगे

16.
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं

हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं

बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं

बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं

अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ
तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं

17.
तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची

मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची

मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची

तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची

एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची

18.
धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो ना

मोल्सरी की शाख़ों पर भी दिये जलें
शाख़ों का केसरया आँचल भेजो ना

नन्ही मुन्नी सब चेहकारें कहाँ गईं
मोरों के पैरों की पायल भेजो ना

बस्ती बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो ना

सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुश्बू, धूप का संदल भेजो ना

मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना

19.
उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो

दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो

शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो

अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो

चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ
ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो

20.
पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले

आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है
मग़्रिब के बाद हम भी तो घर पर नहीं मिले

कल आईनों का जश्न हुआ था तमाम रात
अन्धे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले

मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले

परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले

पेशानी – माथा

दस्तार – पगड़ी
रब्त – लगाव
मग़्रिब – सूर्यास्त का समय

21.
बीमार को मर्ज़ की दवा देनी चाहिए
वो पीना चाहता है पिला देनी चाहिए

अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए

ये दिल किसी फ़कीर के हुज़रे से कम नहीं
ये दुनिया यही पे लाके छुपा देनी चाहिए

मैं फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए

मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाईये मुझे
मैं नीद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए

मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पे सजायें लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए

सच बात कौन है जो सरे-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझको सजा देनी चाहिए

सौदा यही पे होता है हिन्दोस्तान का
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए

22.
मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार था
देर से निकला तो मेरे रास्ते में दार था

अपने ही फैलाओ के नशे में खोया था दरख़्त
और हर मासूम टहनी पर फलों का भार था

देखते ही देखते शहरों की रौनक़ बन गया
कल यही चेहरा था जो हर आईने पे भार था

सब के दुख सुख़ उस के चेहरे पे लिखे पाये गये
आदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था

अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीब
एक ज़माना था कि जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था

काग़ज़ों की सब सियाही बारिशों में धुल गई
हम ने जो सोचा तेरे बारे में सब बेकार था

23.
आँख प्यासी है कोई मन्ज़र दे
इस जज़ीरे को भी समन्दर दे

अपना चेहरा तलाश करना है
गर नहीं आइना तो पत्थर दे

बन्द कलियों को चाहिये शबनम
इन चिराग़ों में रोशनी भर दे

पत्थरों के सरों से कर्ज़ उतार
इस सदी को कोई पयम्बर दे

क़हक़हों में गुज़र रही है हयात
अब किसी दिन उदास भी कर दे

फिर न कहना के ख़ुदकुशी है गुनाह
आज फ़ुर्सत है फ़ैसला कर दे

24.
शहर में ढूंढ रहा हूँ कि सहारा दे दे
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे

पेड़ सब नगेँ फ़क़ीरों की तरह सहमे हैं
किस से उम्मीद ये की जाये कि साया दे दे

वक़्त की सगँज़नी नोच गई सारे नक़श
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे

दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे

मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा
मेरी तन्हाई यहाँ कुछ दिनों पेहरा दे दे

डूब जाना ही मुक़द्दर है तो बेहतर वरना
तूने पतवार जो छीनी है तो तिनका दे दे

जिस ने क़तरों का भी मोहताज किया मुझ को
वो अगर जोश में आ जाये तो दरिया दे दे

तुम को “राहत” की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा
वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे

25.
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

26.
जो मंसबो के पुजारी पहन के आते हैं
कुलाह तौक से भारी पहन के आते है

अमीर शहर तेरे जैसी क़ीमती पोशाक
मेरी गली में भिखारी पहन के आते हैं

यही अकीक़ थे शाहों के ताज की जीनत
जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं

इबादतों की हिफाज़त भी उनके जिम्मे हैं
जो मस्जिदों में सफारी पहन के आते हैं

27.
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं

हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं

बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं

ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं

हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं

28.
दिल जलाया तो अंजाम क्या हुआ मेरा
लिखा है तेज हवाओं ने मर्सिया मेरा

कहीं शरीफ नमाज़ी कहीं फ़रेबी पीर
कबीला मेरा नसब मेरा सिलसिला मेरा

किसी ने जहर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है जायका मेरा

मैं चाहता था ग़ज़ल आस्मान हो जाये
मगर ज़मीन से चिपका है काफ़िया मेरा

मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था
मुझे सुनाते रहे लोग वाकिया मेरा

उसे खबर है कि मैं हर्फ़-हर्फ़ सूरज हूँ
वो शख्स पढ़ता रहा है लिखा हुआ मेरा

जहाँ पे कुछ भी नहीं है वहाँ बहुत कुछ है
ये कायनात तो है खाली हाशिया मेरा

बुलंदियों के सफर में ये ध्यान आता है
ज़मीन देख रही होगी रास्ता मेरा

29.
मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की
दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की

अपनी साँसें बेचकर मैंने जिसे आबाद की
वो गली जन्नत तो अब भी है मगर शद्दाद की

उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर
जिंदगी को ढ़ूंढ़ने में जिंदगी बर्बाद की

दास्तानों के सभी किरदार गुम होने लगे
आज कागज़ चुनती फिरती है परी बगदाद की

इक सुलगता चीखता माहौल है और कुछ नहीं
बात करते हो यगाना किस अमीनाबाद की

30.
शहरों-शहरों गाँव का आँगन याद आया
झूठे दोस्त और सच्चा दुश्मन याद आया

पीली पीली फसलें देख के खेतों में
अपने घर का खाली बरतन याद आया

गिरजा में इक मोम की मरियम रखी थी
माँ की गोद में गुजरा बचपन याद आया

देख के रंगमहल की रंगीं दीवारें
मुझको अपना सूना आँगन याद आया

जंगल सर पे रख के सारा दिन भटके
रात हुई तो राज-सिंहासन याद आया

31.
अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
खाक मुट्ठी में उठाते थे, उड़ा देते थे

बेसमर जान के हम काट चुके हैं जिनको
याद आते हैं के बेचारे हवा देते थे

उसकी महफ़िल में वही सच था वो जो कुछ भी कहे
हम भी गूंगों की तरह हाथ उठा देते थे

अब मेरे हाल पे शर्मिंदा हुये हैं वो बुजुर्ग
जो मुझे फूलने-फलने की दुआ देते थे

अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थे
कत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे

वो हमें कोसता रहता था जमाने भर में
और हम अपना कोई शेर सुना देते थे

घर की तामीर में हम बरसों रहे हैं पागल
रोज दीवार उठाते थे, गिरा देते थे

हम भी अब झूठ की पेशानी को बोसा देंगे
तुम भी सच बोलने वालों के सज़ा देते थे

32.
किसी आहू के लिये दूर तलक मत जाना
शाहज़ादे कहीं जंगल में भटक मत जाना

इम्तहां लेंगे यहाँ सब्र का दुनिया वाले
मेरी आँखों ! कहीं ऐसे में चलक मत जाना

जिंदा रहना है तो सड़कों पे निकलना होगा
घर के बोसीदा किवाड़ों से चिपक मत जाना

कैंचियां ढ़ूंढ़ती फिरती हैं बदन खुश्बू का
खारे सेहरा कहीं भूले से महक मत जाना

ऐ चरागों तुम्हें जलना है सहर होने तक
कहीं मुँहजोर हवाओं से चमक मत जाना

आहू – हिरण

33.
झूठी बुलंदियों का धुँआ पार कर के आ
क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ

इस पार मुंतज़िर हैं तेरी खुश-नसीबियाँ
लेकिन ये शर्त है कि नदी पार कर के आ

कुछ दूर मैं भी दोशे-हवा पर सफर करूँ
कुछ दूर तू भी खाक की सुरत बिखर के आ

मैं धूल में अटा हूँ मगर तुझको क्या हुआ
आईना देख जा ज़रा घर जा सँवर के आ

सोने का रथ फ़क़ीर के घर तक न आयेगा
कुछ माँगना है हमसे तो पैदल उतर के आ

34.
तेरे वादे की तेरे प्यार की मोहताज नहीं
ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं

खाली कशकोल पे इतराई हुई फिरती है
ये फकीरी किसी दस्तार की मोहताज नहीं

लोग होठों पे सजाये हुए फिरते हैं मुझे
मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नहीं

इसे तूफ़ान ही किनारे से लगा सकता है
मेरी कश्ती किसी पतवार की मोहताज नहीं

मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं
ये हुकूमत किसी तलवार की मोहताज नहीं

35.
धोका मुझे दिये पे हुआ आफ़ताब का
ज़िक्रे-शराब में भी है नशा शराब का

जी चाहता है बस उसे पढ़ते ही जायें
चेहरा है या वर्क है खुदा की किताब का

सूरजमुखी के फूल से शायद पता चले
मुँह जाने किसने चूम लिया आफ़ताब का

मिट्टी तुझे सलाम की तेरे ही फ़ैज़ से
आँगन में लहलहाता है पौधा गुलाब का

उठो ऐ चाँद-तारों ऐ शब के सिपाहियों
आवाज दे रहा है लहू आफ़ताब का

36.
गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है

फक़ीर शाख़ कलन्दर इमाम क्या-क्या है
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है

अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए
मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है

37.
हरेक चहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो

न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो

तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यों उछाला मुझे
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इसको हादसा न कहो

ये और बात के दुशमन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो

हमारे ऐब हमें ऊँगलियों पे गिनवाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो

मैं वाक़यात की ज़ंजीर का नहीं कायल
मुझे भी अपने गुनाहो का सिलसिला न कहो

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं “राहत”
हर इक तराशे हुए बुत को देवता न कहो

38.
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैंने
तेरी हर बात पे आमीन कहा है मैंने

तेरी दस्तार पे तन्कीद की हिम्मत तो नहीं
अपनी पापोश को कालीन कहा है मैंने

मस्लेहत कहिये इसे या के सियासत कहिये
चील-कौओं को भी शाहीन कहा है मैंने

ज़ायके बारहा आँखों में मज़ा देते हैं
बाज़ चेहरों को भी नमकीन कहा है मैंने

तूने फ़न की नहीं शिजरे की हिमायत की है
तेरे ऐजाज़ को तौहीन कहा है मैंने

39.
बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया
मेरे नक़्शे से कट गयी दुनिया

तितलियों में समा गया मंज़र
मुट्ठियों में सिमट गयी दुनिया

अपने रस्ते बनाये खुद मैंने
मेरे रस्ते से हट गयी दुनिया

एक नागन का ज़हर है मुझमे
मुझको डस कर पलट गयी दुनिया

कितने खानों में बंट गए हम तुम
कितनी हिस्सों में बंट गयी दुनिया

जब भी दुनिया को छोड़ना चाहा
मुझसे आकर लिपट गयी दुनिया

40.
एक दिन देखकर उदास बहुत
आ गए थे वो मेरे पास बहुत

ख़ुद से मैं कुछ दिनों से मिल न सका
लोग रहते हैं आस-पास बहुत

अब गिरेबाँ बा-दस्त हो जाओ
कर चुके उनसे इल्तेमास बहुत

किसने लिक्खा था शहर का नोहा
लोग पढ़कर हुए उदास बहुत

अब कहाँ हम-से पीने वाले रहे
एक टेबल पे इक गिलास बहुत

तेरे इक ग़म ने रेज़ा-रेज़ा किया
वर्ना हम भी थे ग़म-श्नास बहुत

कौन छाने लुगात का दरिया
आप का एक इक्तेबास बहुत

ज़ख़्म की ओढ़नी, लहू की कमीज़
तन सलामत रहे लिबास बहुत

इल्तेमास – गुज़ारिश
लुगात – शब्दकोष
इक्तेबास – उद्धरण, कोटेशन

41.
कभी अकेले में  मिल कर झंझोड़ दूंगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे

मुझे छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैंने किया था के छोड़ दूंगा उसे

पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो  निचोड़ दूंगा उसे

मज़ा चखा के ही माना हूँ  मैं भी दुनिया को
समझ रही थी  के ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे

बचा के रखता है खुद को वो मुझ से शीशाबदन
उसे ये डर है  के तोड़फोड़ दूंगा उसे

42.
वफ़ा  को  आज़माना  चाहिए  था ,
हमारा  दिल  दुखाना  चाहिए  था
आना  न  आना  मेरी  मर्ज़ी  है ,
तुमको  तो  बुलाना  चाहिए  था
हमारी  ख्वाहिश  एक  घर  की  थी,
उसे  सारा  ज़माना  चाहिए  था
मेरी  आँखें  कहाँ  नाम  हुई  थीं,
समुन्दर को  बहाना  चाहिए  था
जहाँ  पर  पंहुचना  मैं  चाहता  हूँ,
वहां  पे  पंहुच  जाना  चाहिए  था
हमारा  ज़ख्म  पुराना  बहुत  है,
चरागर भी  पुराना  चाहिए  था
मुझसे  पहले  वो  किसी  और  की थी,
 मगर  कुछ  शायराना  चाहिए  था
चलो  माना  ये  छोटी  बात  है,
पर  तुम्हें  सब  कुछ  बताना  चाहिए  था
तेरा  भी  शहर  में  कोई  नहीं  था,
मुझे  भी  एक  ठिकाना  चाहिए  था
कि  किस  को  किस  तरह  से  भूलते  हैं,
तुम्हें   मुझको  सिखाना  चाहिए  था
ऐसा  लगता  है  लहू  में  हमको ,
कलम  को  भी  डुबाना चाहिए  था
अब  मेरे  साथ  रह  के  तंज़  ना कर ,
तुझे  जाना  था  जाना  चाहिए  था
क्या  बस  मैंने  ही  की  है  बेवफाई  ,
जो  भी  सच  है  बताना  चाहिए  था
मेरी  बर्बादी  पे  वो  चाहता  है ,
मुझे  भी  मुस्कुराना  चाहिए  था
बस  एक  तू  ही  मेरे  साथ  में  है ,
तुझे  भी  रूठ  जाना  चाहिए  था
हमारे  पास  जो  ये  फन है  मियां,
हमें  इस  से  कमाना  चाहिए  था
अब  ये  ताज  किस  काम का  है,
हमें  सर  को  बचाना  चाहिए  था
उसी  को  याद  रखा  उम्र  भर  कि ,
जिसको  भूल  जाना  चाहिए  था
मुझसे  बात  भी  करनी  थी,
उसको  गले  से  भी  लगाना  चाहिए  था
उसने  प्यार  से  बुलाया  था,
 हमें  मर  के  भी  आना  चाहिए  था
तुम्हे  ‘सतलज ‘ उसे  पाने  की  खातिर,
कभी  खुद  को  गवाना  चाहिए  था !
43.
मौका है इस बार, रोज़ मना त्यौहार, अल्लाह बादशाह
अपनी है सरकार, सातों दिन इतवार, अल्लाह बादशाह

तेरी ऊँची ज़ात, लश्कर तेरे साथ, तेरे सौ सौ हाथ
तू भी है तैयार, हम भी हैं तैयार, अल्लाह बादशाह

सबकी अपनी फ़ौज, ये मस्ती वो मौज, सब हैं राजा भोज
शेख, मुग़ल, अंसार, सबकी ज़हनी बीमार, अल्लाह बादशाह

दिल्ली ता लाहौर, जंगल चारों और, जिसको देखो चोर
काबुल और कंधार, तोड़ दे ये दीवार, अल्लाह बादशाह

फर्क न इनके बीच, ये बन्दर वो रीछ, सबकी रस्सी खींच
सारे हैं मक्कार, सबको ठोकर मार,अल्लाह बादशाह

पढ़े लिखे बेकार, दर दर हैं फ़नकार, आलिम फ़ाज़िल ख्वार
जाहिल, ढोर, गंवार, कौम हैं सरदार, अल्लाह बादशाह

44.
इश्क़ में जीत के आने के लिये काफी हूँ
मैं अकेला ही ज़माने के लिये काफी हूँ

हर हकीकत को मेरी ख्वाब समझने वाले
मैं तेरी नींद उड़ाने के लिये काफी हूँ

ये अलग बात के अब सुख चुका हूँ फिर भी
धूप की प्यास बुझाने के लिये काफी हूँ

बस किसी तरह मेरी नींद का ये जाल कटे
जाग जाऊँ तो जगाने के लिये काफी हूँ

जाने किस भूल भुलैय्या में हूँ खुद भी लेकिन
मैं तुझे राह पे लाने के लिये काफी हूँ

डर यही है के मुझे नींद ना आ जाये कहीं
मैं तेरे ख्वाब सजाने के लिये काफी हूँ

ज़िंदगी…. ढूंडती फिरती है सहारा किसका ?
मैं तेरा बोझ उठाने के लिये काफी हूँ

मेरे दामन में हैं सौ चाक मगर ए दुनिया
मैं तेरे एब छुपाने के लिये काफी हूँ

एक अखबार हूँ औकात ही क्या मेरी मगर
शहर में आग लगाने के लिये काफी हूँ

मेरे बच्चो…. मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो
मैं अकेला ही कमाने के लिये काफी हूँ

45.
सुला चुकी थी ये दुनिया थपक थपक के मुझे
जगा दिया तेरी पाज़ेब ने खनक के मुझे

कोई बताये के मैं इसका क्या इलाज करूँ
परेशां करता है ये दिल धड़क धड़क के मुझे

ताल्लुकात में कैसे दरार पड़ती है
दिखा दिया किसी कमज़र्फ ने छलक के मुझे

हमें खुद अपने सितारे तलाशने होंगे
ये एक जुगनू ने समझा दिया चमक के मुझे

बहुत सी नज़रें हमारी तरफ हैं महफ़िल में
इशारा कर दिया उसने ज़रा सरक के मुझे

मैं देर रात गए जब भी घर पहुँचता हूँ
वो देखती है बहुत छान के फटक के मुझे

46.
मौम के पास कभी आग को लाकर देखूँ
सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ

कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में
और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ

मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर
दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ

दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ

तेरे बारे में सुना ये है के तू सूरज है
मैं ज़रा देर तेरे साये में आ कर देखूँ

याद आता है के पहले भी कई बार यूं ही
मैने सोचा था के मैं तुझको भुला कर देखूँ

47.
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ

फूँक डालूँगा किसी रोज ये दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है कि जला भी न सकूँ

मेरी गैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे
उसने इस तरह बुलाया है कि जा भी न सकूँ

इक न इक रोज कहीं ढ़ूँढ़ ही लूँगा तुझको
ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ

फल तो सब मेरे दरख्तों के पके हैं लेकिन
इतनी कमजोर हैं शाखें कि हिला भी न सकूँ

मैंने माना कि बहुत सख्त है ग़ालिब कि ज़मीन
क्या मेरे शेर है ऐसे कि सुना भी न सकूं

48.
किसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
अभी बदलता है माहौल, अल्लाह बोल

कैसे साथी, कैसे यार, सब मक्कार
सबकी नीयत डांवाडोल, अल्लाह बोल

जैसा गाहक, वैसा माल, देकर ताल
कागज़ में अंगारे तोल, अल्लाह बोल

हर पत्थर के सामने रख दे आइना
नोच ले हर चेहरे का खोल, अल्लाह बोल

दलालों से नाता तोड़, सबको छोड़
भेज कमीनो पर लाहौल, अल्लाह बोल

इंसानों से इंसानों तक एक सदा
क्या ततारी, क्या मंगोल, अल्लाह बोल

शाख-ए-सहर पे महके फूल अज़ानों के
फ़ेंक रजाई, आंखें खोल, अल्लाह बोल

49.
छू गया जब कभी ख्याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा

कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में
और घर देर तक महकता रहा

रात हम मैक़दे में जा निकले
घर का घर शहर मैं भटकता रहा

उसके दिल में तो कोई मैल न था
मैं खुद जाने क्यूँ झिझकता रहा

मुट्ठियाँ मेरी सख्त होती गयी
जितना दमन कोई भटकता रहा

मीर को पढते पढते सोया था
रात भर नींद में सिसकता रहा

50.
जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है
वो शख्स, सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है

मैं पूजता हूँ जिसे, उससे बेनियाज़ भी हूँ
मेरी नज़र में वो पत्थर भी है खुदा भी है

सवाल नींद का होता तो कोई बात ना थी
हमारे सामने ख्वाबों का मसअला भी है

जवाब दे ना सका, और बन गया दुश्मन
सवाल था, के तेरे घर में आईना भी है

ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन
ये पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है

51.
हवा खुद अब के हवा के खिलाफ है, जानी
दिए जलाओ के मैदान साफ़ है, जानी

हमे चमकती हुई सर्दियों का खौफ नहीं
हमारे पास पुराना लिहाफ है, जानी

वफ़ा का नाम यहाँ हो चूका बहुत बदनाम
मैं बेवफा हूँ मुझे ऐतराफ है, जानी

है अपने रिश्तों की बुनियाद जिन शरायत पर
वहीँ से तेरा मेरा इख्तिलाफ है, जानी

वो मेरी पीठ में खंज़र उतार सकता है
के जंग में तो सभी कुछ मुआफ है, जानी

मैं जाहिलों में भी लहजा बदल नहीं सकता
मेरी असास यही शीन-काफ है, जानी

लिहाफ-सर्दियों के दिनों में सोते समय

ओढ़ने की रूईदार भारी और मोटी रजाई

इख्तिलाफ – मतभेद
मुआफ  – माफ़
असास – नींव

52.
सर पर बोझ अँधियारों का है मौला खैर
और सफ़र कोहसारों का है मौला खैर

दुशमन से तो टक्कर ली है सौ-सौ बार
सामना अबके यारों का है मौला खैर

इस दुनिया में तेरे बाद मेरे सर पर
साया रिश्तेदारों का है मौला खैर

दुनिया से बाहर भी निकलकर देख चुके
सब कुछ दुनियादारों का है मौला खैर

और क़यामत मेरे चराग़ों पर टूटी
झगड़ा चाँद-सितारों का है मौला खैर….

कोहसारों – पहाड़ों

53.
अब ना मैं वो हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे
फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे

जिंदगी हैं तो नए जख्म भी लग जायेंगे
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे

आप से रोज़ मुलाक़ात की उम्मीद नहीं
अब कहा शहर में रहते हैं ठिकाने मेरे

उमरा के राम ने, साँसों का धनुष तोड़ दिया
मुझ पे एहसान किया आज खुदा ने मेरे

आज जब सो के उठा हूँ तो ये महसूस किया
सिसकियाँ भरता रहा कोई सिरहाने मेरे

54.
जो दे रहे हैं फल तुम्हे पके पकाए हुए
वोह पेड़ मिले हैं तुम्हे लगे लगाये हुए

ज़मीर इनके बड़े दागदार है
ये फिर रहे है जो चेहरे धुले धुलाए हुए

जमीन ओढ़ के सोये हैं दुनिया में
न जाने कितने सिकंदर थके थकाए हुए

यह क्या जरूरी है की गज़ले ख़ुद लिखी जाए
खरीद लायेंगे कपड़े सिले सिलाये हुए।
हमारे मुल्क में खादी की बरकते हैं मियां

चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए

55.
बीमार को मरज की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूं, पिला देनी चाहिए

अल्लाह बरकतों से नवाजेगा इश्क़ में
है जितनी पूंजी पास लगा देनी चाहिए

ये दिल किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए

मैं ताज हूं तो सर पे सजाएं लोग
मैं ख़्वाब हूं तो ख़्वाब उड़ा देनी चाहिए

सौदा यहीं पर होता है हिन्दुस्तान का
संसद भवन को आग लगा देनी चाहिए

56.
काम सब गैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं
और हम कुछ नहीं करते हैं, ग़ज़ब करते हैं

हम पे हाकिम का कोई हुक्म नहीं चलता है
हम कलंदर हैं, शहंशाह लक़ब करते हैं

आप की नज़रों में सूरज की है जितनी अजमत
हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं

देखिये जिसको उसे धुन है मसीहाई की
आजकल शहरों के बीमार मतब करते हैं

लक़ब  =  उपाधि
मतब = अस्पताल

57.
इसे सामान-ए-सफर जान ये जुगनू रख ले
राह में तीरगी होगी मीरे आँसू रख ले

तु जो चाहे तो तिरा झूट भी बिक सकता है
शर्त इतनी है कि सोने की तराजू रख ले

वो कोई जिस्म नहीं है की उसे छू भी सकें
हाँ अगर नाम ही रखना है तो खुश्बू रख ले

तुझ को अन-देखी बुलंदी में सफर करना है
एहतियातन मिरी हिम्मत मीरे बाजू रख ले

मिरी ख्वाहिश है की आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की जमीं तू रख ले

तीरगी  =  अँधेरा

58.
उसे अब के वफाओं से गुजर जाने की जल्दी थी
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी

इरादा था कि मैं कुछ देर तूफाँ का मज़ा लेता
मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी

मैं अपनी मुट्ठियों मैं क़ैद कर लेता ज़मीनों को
मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी

मैं आखिर कौनसा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी

वो शाखों से जुदा होते हुए पत्तों पे हँसते थे
बड़े जिंदा-नज़र थे जिन को मर जाने की जल्दी थी

मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी

कम-ज़र्फ़ = नीच, मुर्ख, कंजूस,

59.
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है

जिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो
इस मुसाफिर को तो रास्ते में ठहर जाना है

मौत लम्हे की सदा ज़िंदगी उम्रों की पुकार
मैं यही सोच के ज़िंदा हूँ की मर जाना है

नश्शा ऐसा था की मय-खाने को दुनिया समझा
होश आया तो ख़याल आया की घर जाना है

मेरे जज़्बे की बड़ी कद्र हैं लोगों में मगर
मेरे ज़ज्बें को मेरे साथ ही मर जाना है

60.
चमकते लफ्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
हम आसमाँ से ग़ज़ल की ज़मीन लाए हैं

वो और होंगे जो खंजर छुपा के लाते हैं
हम अपने साथ फटी आस्तीन लाए हैं

हमारी बात की गहराई ख़ाक समझेंगे
जो पर्बतों के लिए खुर्दबीन लाए हैं

हँसो न हम पे कि हर बद-नसीब बंजारे
सरों पे रख के वतन की ज़मीन लाए हैं

मेरे क़बीले के बच्चों के खेल भी हैं अजीब
किसी सिपाही की तलवार छीन लाए हैं

खुर्दबीन = दूरबीन

61.
जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से
फूल इस बार खिले हैं बड़ी तय्यारी से

अपनी हर साँस को नीलाम किया है मैं ने
लोग आसान हुए हैं बड़ी दुश्वारी से

जेहन में जब भी तेरे ख़त की इबारत चमकी
एक खुश्बू सी निकलने लगी अलमारी से

शाहज़ादे से मुलाक़ात तो ना-मुमकिन है
चलिए मिल आते है चल कर किसी दरबारी से

बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के न लिए
हम ने खैरात भी माँगी है तो खुद्धारी से

62.
ज़िंदगी को जख्म की लज़्ज़त से मत महरूम कर
रास्ते के पत्थरों से खैरियत मालूम कर

टूट कर बिखरी हुई तलवार के टुकड़े समेट
और अपने हार जाने का सबब मालूम कर

जागती आँखों के ख़्वाबों को ग़ज़ल का नाम दे
रात भर की करवटों का जाइका मंजूम कर

शाम तक लौट आऊँगा हाथों का खाली-पन लिए
आज फिर निकला हूँ मैं घर से हथेली चूम कर

मत सिखा लहज़े को अपनी बर्छियों के पैतरें
ज़िंदा रहना है तो लहज़े को जरा मासूम कर

लज़्ज़त = स्वाद
सबब = कारण

63.
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो

एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मे यारी रखो

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

ले तो आए शायरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो

64.
राह में ख़तरे भी हैं लेकिन ठहरता कौन है
मौत कल आती है आज आ जाए डरता कौन है

सब ही अपनी तेजगामी के नशे में चूर हैं
लाख़ आवाज़ें लगा लीजे ठहरता कौन है

हैं परिंदों के लिए शादाब पेड़ों के हुजूम
अब मेरी टूटी हुई छत पर उतरता कौन है

तेरे लश्कर के मुक़ाबिल मैं अकेला हूँ मगर
फ़ैसला मैदान में होगा कि मरता कौन है

65.
चलते फिरते हुए महताब दिखायेंगे तुम्हें
हमसे मिलना कभी पंजाब दिखायेंगे तुम्हें

चाँद हर छत पे है ,सुरज है हर एक आंगन में
नींद से ज़ागो तो कुछ ख़्वाब दिखायेंगे तुम्हें

पूछते क्या हो रुमाल के पीछे क्या है
फिर किसी ऱोज ये शैलाब दिखायेंगे तुम्हें

66.
हजा़र पर्दों में खु़द को छुपा के बैठ मगर,
तुझे कभी न कभी बेनक़ाब कर दूँगा ।।

मुझे यकीं है कि महफि़ल की रोशनी हूँ मैं,
उन्हें ये खौफ कि महफि़ल ख़राब कर दूँगा ।।

मुझे गिलास के अन्दर ही कै़द रख वर्ना,
मैं सारे शहर का पानी शराब कर दूँगा ।।

महाजनों से कहो थोड़ा इन्तजार करें,
शराबख़ाने से आकर हिसाब कर दूँगा ।।

67.
ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ
वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ

ख़ुदा का शुक्र कि मेरा मकाँ सलामत है
हैं उतनी तेज़ हवाएँ कि बस्तियाँ उड़ जाएँ

ज़मीं से एक तअल्लुक़ ने बाँध रक्खा है
बदन में ख़ून नहीं हो तो हड्डियाँ उड़ जाएँ

बिखर बिखर सी गई है किताब साँसों की
ये काग़ज़ात ख़ुदा जाने कब कहाँ उड़ जाएँ

रहे ख़याल कि मज्ज़ूब-ए-इश्क़ हैं हम लोग
अगर ज़मीन से फूंकें तो आसमाँ उड़ जाएँ

हवाएँ बाज़ कहाँ आती हैं शरारत से
सरों पे हाथ न रक्खें तो पगड़ियाँ उड़ जाएँ

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ

मज्ज़ूब-ए-इश्क़ – प्यार से भरे हुए
ग़ुरूर – घमंड





70.

नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में
उजाले पाँव पटकने लगे हैं पानी में

ये कोई और ही किरदार है तुम्हारी तरह
तुम्हारा ज़िक्र नहीं है मेरी कहानी में

अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे
बड़े सवाब कमाए गए जवानी में

चमकता रहता है सूरज-मुखी में कोई और
महक रहा है कोई और रात-रानी में

ये मौज मौज नई हलचलें सी कैसी हैं
ये किस ने पाँव उतारे उदास पानी में

मैं सोचता हूँ कोई और कारोबार करूँ
किताब कौन ख़रीदेगा इस गिरानी में

सवाब – अच्छे कार्यों पर मिलाने वाला ईनाम
शब – रात
गिरानी – महंगाई

Friday 8 February 2019

The Best And Largest Collection Of Munawwar Rana By Junaid Sir 8709628792



1.
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये

आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये

ऐरे गैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आपको औरत नहीं अखबार होना चाहिये

जिंदगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें
टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क के हिस्से में भी इतवार होना चाहिये
2.
मैं उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह
वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह

मुझे सँभालने वाला कहाँ से आएगा
मैं गिर रहा हूँ पुरानी इमारतों की तरह

हँसा-हँसा के रुलाती है रात-दिन दुनिया
सुलूक इसका है अय्याश औरतों की तरह

वफ़ा की राह मिलेगी, इसी तमना में
भटक रही है मोहब्बत भी उम्मतों की तरह

मताए-दर्द-लूटी तो लुटी ये दिल भी कहीं
न डूब जाए गरीबों की उजरतों की तरह

खुदा करे कि उमीदों के हाथ पीले हों
अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह

यहीं पे दफ़्न हैं मासूम चाहतें राना
हमारा दिल भी है बच्चों की तुरबतों की तरह
3.
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिलकर उठाते हैं
4.
समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया
इतने घुटने टेके हमने, आख़िर घुटना टूट गया

देख शिकारी तेरे कारण  एक परिन्दा टूट गया,
पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन शीशा टूट गया

घर का बोझ उठाने वाले बचपन की तक़दीर न पूछ
बच्चा घर से काम पे निकला और खिलौना टूट गया

किसको फ़ुर्सत इस दुनिया में ग़म की कहानी पढ़ने की
सूनी कलाई देखके लेकिन, चूड़ी वाला टूट गया

ये मंज़र भी देखे हमने इस दुनिया के मेले में
टूटा-फूटा नाच रहा है, अच्छा ख़ासा टूट गया

पेट की ख़ातिर फ़ुटपाथों पर बेच रहा हूँ तस्वीरें
मैं क्या जानूँ रोज़ा है या मेरा रोज़ा टूट गया
5.
ज़रूरत  से अना का भारी पत्थर टूट जाता है
मगर फिर आदमी भी अन्दर -अन्दर टूट जाता है

ख़ुदा के वास्ते इतना न मुझको टूटकर चाहो
ज़्यादा भीख मिलने से गदागर टूट जाता है

तुम्हारे शहर में रहने को तो रहते हैं हम लेकिन
कभी हम टूट जाते हैं कभी घर टूट जाता है
6.
लिबासे जिस्म पे इफ्लास की दीमक का क़ब्ज़ा है
जो चेहरा चाँद जैसा था वहाँ चेचक का क़ब्ज़ा है
ग़रीबों पर तो मौसम भी हुकूमत करते रहते हैं
कभी बारिश कभी गर्मी कभी ठन्डक क़ब्ज़ा है
7.
मुनव्वर में यक़ीनन कुछ न कुछ तो ख़ुबीयाँ होंगी
ये दुनिया युँ ही उस पागल की दीवानी नहीं होगी
8.
भरोसा  मत  करो  साँसों  की  डोर  टूट  जाती  है ,
छतें   महफ़ूज़   रहती   हैं   हवेली   टूट   जाती  है!

मोहब्बत भी अजब शै  है वो  जब  परदेस  में  रोये ,
तो  फ़ौरन  हाथ  की  एक-आध  चूड़ी  टूट  जाती है!

कहीं   कोई   कलाई   एक   चूड़ी   को   तरसती  है,
कहीं   कंगन   के  झटके  से  कलाई  टूट  जाती  है !

लड़कपन में किये वादे की क़ीमत  कुछ  नहीं  होती,
अँगूठी   हाथ   में   रहती   है   मंगनी   टूट  जाती  है!

किसी  दिन प्यासे के बारे में उस से पूछिये जिस की,
कुएं  में   बाल्टी   रहती   है   रस्सी   टूट   जाती   है !

कभी  एक   गर्म  आँसू   काट  देता  है  चट्टानों  को ,
कभी  एक  मोम  के  टुकड़े  से  छैनी  टूट  जाती  है!


9.
बड़े बड़ों को बिगाड़ा है हम ने ऐ राना
हमारे लेहजे में उस्ताद शेर कहने लगे
10.
किसी भी ग़म के सहारे नहीं गुज़रती है
ये ज़िंदगी तो गुज़ारे नहीं गुज़रती है

कभी चराग़ तो देखो जुनूं की हालत में
हवा तो ख़ौफ़ के मारे नहीं गुज़रती है

नहीं-नहीं ये तुम्हारी नज़र का धोखा है
अना तो हाथ पसारे नहीं गुज़रती है

मेरी गली से गुज़रती है जब भी रुस्वाई
बग़ैर मुझको पुकारे नहीं गुज़रती है

मैं ज़िंदगी तो कहीं भी गुज़ार सकता हूं
मगर बग़ैर तुम्हारे नहीं गुज़रती है

हमें तो भेजा गया है समंदरों के लिए
हमारी उम्र किनारे नहीं गुज़रती है
11.
वो जालिम मेरी हर ख्वाहिश ये कह कर टाल जाता है
दिसंबर जनवरी में कोई नैनीताल जाता है

अभी तो बेवफाई का कोई मौसम नहीं आया
अभी से उड़ के क्यों ये रेशमी रूमाल जाता है

वज़ारत के लिए हम दोस्तों का साथ मत छोड़ो
इधर इक़बाल आता है उधर इक़बाल जाता है

मुनासिब है कि पहले तुम भी आदमखोर बन जाओ
कहीं संसद में खाने कोई चावल दाल जाता है

ये मेरे मुल्क का नक़्शा नहीं है एक कासा है
इधर से जो गुज़रता है वो सिक्के डाल जाता है

मोहब्बत रोज़ पत्थर से हमें इंसां बनाती है
तआस्सुब रोज़ इन आंखों पे परदा डाल जाता है
12.
छाँव मिल जाए तो कम दाम में बिक जाती है
अब थकन थोड़े से आराम में बिक जाती है ।
आप क्या मुझ को नवाज़ेंगे जनाब ए आली,
सल्तनत तक मेरे ईनाम में बिक जाती है ।
13.
मैने रोते हुए पोछें थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
14.
मियाँ रुसवाई दौलत के तआवुन से नहीं जाती
यह कालिख उम्र भर रहती है साबुन से नहीं जाती

शकर फ़िरकापरस्ती की तरह रहती है नस्लों तक
ये बीमारी करेले और जामुन से नहीं जाती

वो सन्दल के बने कमरे में भी रहने लगा लेकिन
महक मेरे लहू की उसके नाख़ुन से नहीं जाती

इधर भी सारे अपने हैं उधर भी सारे अपने थे
ख़बर भी जीत की भिजवाई अर्जुन से नहीं जाती

मुहब्बत की कहानी मुख़्तसर होती तो है लेकिन
कही मुझसे नहीं जाती सुनी उनसे नहीं जाती
15.
सियासी आदमी की शक्ल तो प्यारी निकलती है
मगर जब गुफ्तगू करता है चिंगारी निकलती है

लबों पर मुस्कराहट दिल में बेजारी निकलती है
बडे लोगों में ही अक्सर ये बीमारी निकलती है

मोहब्बत को जबर्दस्ती तो लादा जा नहीं सकता
कहीं खिडकी से मेरी जान अलमारी निकलती है
16.
घरौंदे तोड़ कर साहिल से यूँ पानी पलटता है
कि जैसे मुफ़लिसी से खेल कर ज़ानी पलटता है

किसी को देखकर रोते हुए हँसना नहीं अच्छा
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्त-ए-सुलतानी पलटता है

कहीं हम सरफ़रोशों को सलाख़ें रोक सकती हैं
कहो ज़िल्ले इलाही से कि ज़िन्दानी पलटता है

सिपाही मोर्चे से उम्र भर पीछे नहीं हटता
सियासतदाँ ज़बाँ दे कर बआसानी पलटता है

तुम्हारा ग़म लहू का एक-एक क़तरा निचोड़ेगा
हमेशा सूद लेकर ही ये अफ़ग़ानी पलटता है
17.
मुख़्तसर होते हुए भी ज़िन्दगी बढ़ जायेगी
माँ की ऑंखें चूम लीजै रौशनी बढ़ जायेगी

मौत का आना तो तय है मौत आयेगी मगर
आपके आने से थोड़ी ज़िन्दगी बढ़ जायेगी

इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप
शहर वालों से हमारी दुशमनी बढ़ जायेगी

आपके हँसने से खतरा और भी बढ़ जायेगा
इस तरह तो और आँखों की नमी बढ़ जायेगी

बेवफ़ाई खेल है इसको नज़र अंदाज़ कर
तज़किरा करने से तो शरमिन्दगी बढ़ जायेगी
18.
थकी-मांदी हुई बेचारियाँ आराम करती हैं
न छेड़ो ज़ख़्म को बीमारियाँ आराम करती हैं

सुलाकर अपने बच्चे को यही हर माँ समझती है
कि उसकी गोद में किलकारियाँ आराम करती हैं

किसी दिन ऎ समुन्दर झांक मेरे दिल के सहरा में
न जाने कितनी ही तहदारियाँ आराम करती हैं

अभी तक दिल में रोशन हैं तुम्हारी याद के जुगनू
अभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं

कहां रंगों की आमेज़िश की ज़हमत आप करते हैं
लहू से खेलिये पिचकारियाँ आराम करती हैं
19.
अच्छी से अच्छी आबो हवा के बग़ैर भी,
ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी।

सांसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें,
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी।

बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग,
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी ।

हम बेकुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं,
शर्मिन्दा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर भी।
20.
वो जा रहा है घर से जनाज़ा बुज़ुर्ग का,
आँगन में एक दरख़्त पुराना नहीं रहा।